अश्वगंधा के फ़ायदे, उपयोग और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी

अश्वगंधा नाम आप ने कभी न कभी सुना अवश्य होगा। चाहें आप के मोबाइल पर आ रहे प्रचार पर हो। या फिर टेलीविजन,अख़बार में हो, या किसी व्यक्ति द्वारा बताया गया हो। तो आप के मन में एक सवाल आया होगा की यह अश्वगंधा क्या हैं ,अश्वगंधा के क्या लाभ हैं और क्या हानि हैं। इन्ही सभी सवालों के जवाब जानेगे।

कैसे पहचाने असली अश्वगंधा ?

अश्वगंधा एक जड़ी-बूटी है जो प्राकृतिक रूप से भारत में पायी जाती है। इसका वैज्ञानिक नाम विथानिया सोम्निफेरा के नाम से जाना जाता है। यह पौधा 1 फुट से 6 फुट तक की ऊंचाई तक पहुँच सकता है और इसके पत्ते मोटे होते हैं जो 6 इंच तक लम्बे होते हैं। इसके फूल सफेद और पीले रंग के होते हैं और इसके फल का रंग हल्का लाल होता है। अश्वगंधा के पत्तों, जड़, और फल का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं में किया जाता है। इसे एक जीवनशक्ति बढ़ाने वाली औषधि माना जाता है। अश्वगंधा एक आयुर्वेदिक औषधि है जो जिनसेंग के समतुल्य मानी जाती है और इसके कुछ प्रभाव भी जिनसेंग के समान ही हैं। संस्कृत में अश्वगंधा का अर्थ है- घोड़े की गंध । इसकी ताजा पत्तियों तथा जड़ों में घोड़े के मूत्र की गंध आने के कारण ही इसका नाम अश्वगंधा पड़ा। वैश्विक बाजार में यह व्यापक स्तर पर स्वीकार्य और प्रयोग होने वाली जड़ी-बूटी है,भारत में अश्वगंधा का उत्पादन राजस्थान और मध्य प्रदेश में सूखी, बेकार भूमि पर पाया जाता है। चीन और कोरिया जैसे देशों में भी उगाई जाती है । यह एक आधारभूत जड़ी-बूटी है। एक समय पर इसे भारतीय जिनसेंग भी कहा जाता था । अश्वगंधा विशेषतया रुप से वर्षा ऋतु में उगती है। और कई स्थानों पर यह बारह महीने मिलती है। इसमें पुरुषत्व देने की शक्ति होती है। इसलिए इसे वाजीकर कहा जाता है। अश्वगंधा स्वाद में कड़वा होता है।

असली अश्वगंधा की पहचान करने के लिए इसके पौधों को मसलने पर घोड़े के पेशाब जैसी गंध आती है। और यह गंध कुछ देर तक बनी रहती हैं। अश्वगंधा की ताजी जड़ में यह गंध अधिक तेज होती है। वन में पाए जाने वाले पौधों की तुलना में खेती के माध्‍यम से उगाए जाने वाले अश्‍वगंधा की गुणवत्‍ता अच्‍छी होती है। तेल निकालने के लिए वनों में पाया जाने वाला अश्‍वगंधा का पौधा ही अच्‍छा माना जाता है। और अश्‍वगंधा की जबसे ज्यादा पैदवार वनों के माध्यम से ही होता हैं। परतुं आज के समय इसकी खेती करने की प्रचलन बढ़ी हैं।

अश्वगंधा के नाम

अश्वगंधा का नाम अलग-अलग भाषा में अलग-अलग होता है। जैसे:-

संस्कृत में अश्वगंधा का नाम – गन्धता ,वरदा, कुष्ठ, गन्धिनी

हिन्दी मे अश्वगंधा का नाम – असगन्ध ,ढोरगुज

मराठी में अश्वगंधा का नाम – असगन्ध

गुजराती में अश्वगंधा का नाम – आसोध,आसुन

अश्वगंधा के प्रकार

छोटी अश्वगंधा- छोटी अश्वगंधा कों नागोरी अश्वगंधा कहते हैं। यह राजस्थान के नागौर में पाया जाता है। इसका क्षुप छोटा होता है। छोटी अश्वगंधा बहुतायत मात्रा में पायी जाती है।

बड़ी या देशी अश्वगंधा- इसका क्षुप बड़ा होता है। यह मुम्बई के बाजारों में बिकता है।

अश्वगंधा का पुष्प- छोटे-छोटे लम्बे चिमच के आकार के और पीताभ हरित वर्ण होता है।

अश्वगंधा का फल- छोटे-छोटे मटर के दाने के आकार के होते हैं। मूल 4-5 इंच लम्बे शक की आकार की होती है।

अश्वगंधा के यौन संबंधी फायदे

  1. अश्वगंधा शरीर की उत्कंठा, बेचैनी व घबराहट को शांत करती है।
  2. यह शरीर की ग्रंथीय और यौन कार्यप्रणाली, दमखम और ऊर्जा को पुनर्जीवित करने के लिए जानी जाती है। आयुर्वेद में इसे पुरुषों के लिए जीवनभर का टॉनिक माना गया है।
  3. यौन क्षमता बढ़ाने के साथ ही शुक्राणुओं की संख्या भी बढ़ाती है।
  4. जड़ शक्तिवर्धक, शुक्राणु वर्धक और पौष्टिक होती है। यह शरीर को बलवान बनाती है।
  5. इससे आलस्य नहीं रहता। जिन्हें सेक्स के दौरान थकान होती हैं, उन्हें काफी लाभ मिलता है
  6. महिला संबंधी बीमारियों जैसे श्वेत प्रदर, अधिक रक्तस्राव, गर्भपात आदि में लाभकारी होती है।
  7. महिलाओं की प्रजनन क्षमता बढ़ती है। शरीर में आयरन बढ़ता है।

अश्‍वगंधा के और अन्य महत्त्वपूर्ण फायदे

अश्वगंधादी लेहया (Ashwagandhadi lehya) तथा अश्वगंधारिष्टा (Ashwagandharishta) में यह जड़ी-बूटी प्रमुख तत्त्व के रूप में उपस्थित होती है। आयुर्वेद में अश्‍वगंधा का इस्‍तेमाल अश्वगंधा के पत्‍ते, अश्वगंधा चूर्ण के रुप में किया जाता है। और अश्‍वगंधा से अनेकों दवाइयों का मिश्रण तैयार किया जाता। अश्वगंधा शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। रक्तचाप सही रखती है। तनाव कम होता है। कोलेस्ट्रॉल को घटाती है। पाचन क्रिया सही रहती है। नींद अच्छी आती है। टीबी यानी तपेदिक के रोग में भी लाभकारी है। जड़ों के पाउडर का प्रयोग खाँसी और अस्थमा को दूर करने के लिये भी किया जाता है। जड़ों को त्वचा सबंधी बीमारियों के निदान हेतु प्रयोग किया जाता है। इसमें एंटी ट्यूमर और एंटी बायोटिक गुण भी पाया जाता है। तंत्रिका तंत्र संबंधी कमजोरी को भी दूर करने के लिये इसका प्रयोग किया जाता है। गठिया और जोड़ों के दर्द को ठीक करने के लिये भी जड़ों के चूर्ण का प्रयोग किया जाता है।अश्‍वगंधा के जितने फायदे हैं। उतने ही नुकसान भी है। अगर आप चिकित्सक के निगरानी में नहीं लेते हैं तो। अश्वगंधा के निम्न फायदे हैं।

सफेद बाल- अगर किसी व्यक्ति के बाल सफ़ेद हो गए हो तो,अश्‍वगंधा का उपयोग करता है तो,उसे कुछ अंतर अवश्य दिखाई देगा।अश्‍वगंधा का उपयोग आप इसका चूर्ण बना कर सकते हैं।

आंखों की रोशनी में- अगर किसी इंसान को कम दिखाई देता हैं तो, अगर वह इंसान नियमित रूप से अश्‍वगंधा, आंवला (धात्री फल) और मुलेठी का सेवन करता हैं। तो                            इसके सेवन का असर व्यक्ति को 2-3 सप्ताह के बाद दिखाई देने लगेगा।

टीबी रोग में – अश्‍वगंधा की काढ़े का सेवन लगातार कोई व्यक्ति 3-4 सप्ताह कर ले तो उस व्यक्ति की कितनी भी पुरानी क्यों ना क्षय रोग(टीबी) हो। इसका प्रभाव उस व्यक्ति बहुत जल्द मिलना शुरू हो जाता हैं। बस इसका सेवन नियमित हो तो।

चोट लगने पर- अगर किसी व्यक्ति को चोट लग जाती हैं तो, यदि वह व्यक्ति चोट लगने पर अश्वगंधा पाउडर में गुड़ या घी को मिला कर इसका सेवन करता हैं। तो चोट से हो रही दर्द से उसे आराम मिलेगा। और घाव जल्दी ठीक हो जायेगा।

त्‍वचा रोग में – अश्‍वगंधा के पत्‍तों का पेस्‍ट तैयार लें। इसका लेप या पत्‍तों के काढ़े से धोने से त्वचा में लगने वाले कीड़े नहीं लगते हैं। इससे मधुमेह से होने वाले घाव तथा अन्‍य प्रकार के घावों का इलाज होता है। यह सूजन को दूर करने में लाभप्रद होता है।

शारीरिक कमजोरी में- 

  1. असगंधा मूल चूर्ण को पित्त प्रकृति वाला व्‍यक्ति ताजे दूध (कच्चा/धारोष्ण) के साथ सेवन करें। वात प्रकृति वाला शुद्ध तिल के साथ सेवन करें और कफ प्रकृति का व्‍यक्ति गुनगुने जल के साथ एक साल तक सेवन करें। इससे शारीरिक कमोजरी दूर होती है और सभी रोगों से मुक्ति मिलती है।
  2. 15-20 ग्राम असगंधा चूर्ण, तिल 20-40 ग्राम और उड़द 145-160 ग्राम लें। इन तीनों को महीन पीसकर इसके बड़े बनाकर ताजे-ताजे एक महीने तक सेवन करने से शरीर की दुर्बलता खत्‍म हो जाती है।
  3. असगंधा की जड़ और चिरायता को बराबर भाग में लेकर अच्‍छी तरह से कूट कर मिला लें। इस चूर्ण को 2-4 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम दूध      के साथ सेवन करने से शरीर की दुर्बलता खत्‍म हो जाती है।

बुखार उतारने में- अश्‍वगंधा चूर्ण तथा गिलोय सत् (जूस) को मिला लें। इसे हर दिन शाम को गुनगुने पानी या शहद के साथ खाने से पुराना बुखार ठीक होता है।

रोग-प्रतिरोधक क्षमता में – अश्वगंधा प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित करता है, इन्फ्लामेशन का मुकाबला करता है, याददाश्त बढ़ाता है और सामान्य स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है।अश्वगंधा को सर्दी और खांसी, अल्सर, दुर्बलता, मधुमेह, गठिया, आंतों में संक्रमण, अस्थमा, नपुंसकता और एचआईवी में इलाज के रूप मे लिया जाता है।

काया कल्प चूर्ण- नागौरी अश्वगंधा व विधारा समभाग महीन चूर्ण कर बराबर मिश्री मिलाकर गाय के धारोष्ण दूध के साथ दो माह तक सेवन करने से दुर्बल व्यक्ति मोटा तगड़ा हो जाता है।

कामदेव घृत- अश्वगंधा 5 सेर, गोखरू 5 सेर, खरंटी, गिलोय, शतावर पुनर्नवा, पीपल की छाल, अजीर, कमलगट्टा, सोंठ, भिगोई हुई उड़द की दाल 10-10 छटांक, उक्त सब को कूटकर, पानी में डाल लें। और किसी कलईदार बर्तन मे धीमी आंच मे पका कर काढा बनायें । जलते – जलते जब चौथाई पानी रह जाये तब उतार कर उसे बारीक कपड़े से छान लें। फाफोली, क्षीर काकोली अश्वगंधा, सालमपजा, मिश्री, शकाकुल मिश्री, जोवन्ती, मुलहठी, वनमूग, बन उड़द, कूठ, कमल गट्टा, लाल चन्दन, तेजपात, पीपल, दाख, कोच बीज, नाग केशर, खरंटी, घी ये सभी को लेकर कूटकर रात को गुनगुने पानी में भिगो दें। प्रात काल चटनी की भांति पीसकर खिलायें और उसमें 100 ग्राम खाट 4 सेर सफेद ईख का रस, गाय का घी 4 सेर यह सब उक्त कांसे मे मिला लें, फिर किसी कलईदार बर्तन में चढाकर धीमी-धीमी आंच मे पकावें, जब सब जलकर घी रह जावे तब तावे को उतार लें और छानकर बड़े मुह वाली बोतल मे भरके ढकन लगाकर रख दें। यह कामदेव धृत परम पुरुषार्थ शक्तिकर्ता है । इसकी मात्र 1 तोला प्रतिदिन लें। यह दवा धातु क्षय, छाती की जलन, शारीरिक दुर्बलता आदि को दूर करती है। यदि किसी पुरुष ने वाल्यावस्था मे किन्ही कारणो से वीर्य का नाश कर लिया हो तो उनको यह औषधि वीर्य दाता, व्यक्तिवर्धक और रसायन है।

महत्त्वपूर्ण जानकारी  –  स्वप्नदोष नाशक अश्वगंधा विधारा, जायफल, छोटी इलायची, नागरमोथा, कोंच के बीज, गोबर, शतावर, त्रिफला, लाजबन्ती, खस, चंशलोचन, प्रत्येक 1-1 तोला, इनको कूट कर पीस लें और कपड़ा से छान लें और फिर समान मिश्री मिला कर। गाय के दूध से सेवन करे । यह योग स्वप्नदोष निराकरण में हितकारी साबित होगा।

सेवन करते वक़्त सावधानियाँ

अश्वगंधा के सेवन से कोई विशेष नुकसान देखने को नहीं मिलते है क्यों की ये एक आयुर्वेदिक औषधि है परन्तु यदि आप अधिक मात्रा में सेवन करते है तो इसके निम्न नुकसान देखे जा सकते है

  1. अश्वगंधा के जरूरत से ज्यादा सेवन से पेट में गैस, दस्त आदि की समस्या हो सकती है। ज्यादा सेवन से यह आंतों को भी नुकसान पहुंचा सकती है।
  2. ज्यादा सेवन से ज्यादा नींद आती है और यदि ज्यादा सेवन जारी रहता है तो नींद आनी बंद भी हो सकती है। इसीलिए अश्वगंधा का सेवन नियंत्रित मात्रा में ही करना चाहिए।
  3. अगर किसी अन्य रोग की दवा ले रहे हैं तो अश्वगंधा का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि यदि शरीर में अश्वगंधा का अंश जा रहा है तो यह अन्य दवाई को शरीर में नहीं लगने देती ।
  4. अश्वगंधा के ज्यादा सेवन से शरीर का तापमान बढ़ता है । ज्यादा सेवन से बुखार भी हो सकता है। इसलिए गर्मी के मौसम में इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
  5. डायबिटीज, गठिया और आर्थराइटिस के रोगियों को सेवन नहीं करना चाहिए। अल्सर, गैस की समस्या वाले लोगों को भी नहीं लेना चाहिए। गर्भवती महिलाओं को इसके सेवन से बचना चाहिए।

नोट – अश्‍वगंधा के नुकसानदेह प्रभाव को गोंद, कतीरा एवं घी के सेवन से ठीक किया जाता है।

अश्‍वगंधा के उपयोगी हिस्से

  1. पत्‍ते
  2. जड़
  3. फल
  4. बीज

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