शतावरी का नाम आप ने अवश्य किसी बड़े बुजुर्ग द्वारा कभी जड़ी-बुटी के बारे में हो रहे चर्चा में सुने होंगे। या फिर आप शतावरी नाम से पर्चित ही ना हो। शतावरी क्या है, शतावरी के फायदे क्या हैं,शतावरी के नुकसान,शतावरी का सेवन कैसे किया जाता है,या यह कहां मिलता है ? शतावरी के उपजोग से आप कई गभीर बीमारियों को ठीक सकते हैं। आयुर्वेद मे शतावरी के कई फायदे बताये गये हैं। आज हम शतावरी से जुड़े सवालों के बारे में जानेगे।
असली शतावरी की पहचान
आयुर्वेद के ग्रंथों में शतावरी का अर्थ है- वह जिसके सौ पति हैं। नाम जैसा भी है, लेकिन शतावरी का उपयोग करने वालों को शानदार जीवन ऊर्जा प्रदान करती है। जिस प्रकार से पुरुषों के लिए अश्वगंधा को पुनर्जीवन देने वाली प्रमुख औषधि माना जाता है, ठीक उसी प्रकार से महिलाओं में ऐसी ही भूमिका शतावरी निभाती है। फ्रेंच भाषा में तो शतावरी यानी ऐस्पेरेगस को एस्परजे कहा जाता है जो पेनिस यानी लिंग का स्लैंग है। इसे ‘शतावर’, ‘सतावरी’, ‘सतमूल’ और ‘सतमूली’, ‘शतावरी’ के नाम से भी जाना जाता है।
हालांकि इन दोनों ही औषधियों के कुछ अच्छे प्रभाव स्त्री-पुरुष दोनों पर पड़ते हैं। यह हर उम्र की महिलाओं के लिए पोषक टॉनिक है क्योंकि इसमें बहुत सारे फाइटो- हार्मोन होते हैं, जो कि महिलाओं के शरीर में मौजूद हार्मोन के समान ही होते हैं। शतावरी एक औषधीय पौधा है जिसकी जड़ों को अमृत का भी दर्जा दिया जाता है। शतावरी स्वाद में कड़वी ज़रूर है परंतु पोषक तत्त्वों से भरी हुई है। यौन संबंधी इस्तेमाल के अलावा डायबिटीज की समस्या में, वजन घटाने, त्वचा पर निखार लाने आदि में भी इसका काफी प्रयोग किया जाता है। इसकी लता फैलने वाली, और झाड़ीदार होती है। एक-एक बेल के नीचे कम से कम 100,या इससे अधिक जड़ें होती हैं। ये जड़ें लगभग 30-100 सेमी लम्बी, एवं 1-2 सेमी मोटी होती हैं। जड़ों के दोनों सिरें नुकीली होती हैं।
इसकी जड़ें गुच्छों के रूप में होतीं हैं। इन जड़ों के ऊपर भूरे रंग का, पतला छिलका रहता है। इस छिलके को निकाल देने से अन्दर दूध के समान सफेद जड़ें निकलती हैं। इन जड़ों के बीच में कड़ा रेशा होता है, जो गीली एवं सूखी अवस्था में ही निकाला जा सकता है। वर्तमान समय में इस पौधे पर लुप्त होने का खतरा है।
शतावरी के प्रकार
कुन्तपत्रा शतावर(शतावरी) :- यह झाड़ीनुमा पौधा होता है। इसके कन्द छोटे, और मोटे होते हैं। इसके फूल सफेद रंग के होते हैं, और फल गोल होते हैं। कच्ची अवस्था में फल हरे रंग के, और पकने पर लाल रंग के हो जाते हैं। इसके कंद शतावर से छोटे होते हैं।
विरलकन्द शतावर(शतावरी) :- इसके कन्द छोटे, मांसल, फूले हुए तथा गुच्छों में लगे हुए होते हैं। इसके कन्द का काढ़ा बनाकर सेवन किया जाता है।
शतावरी में पाए जाने वाले मुख्य पोषक तत्व
शतावरी में मुख्य रूप से वसा, आयरन, मैग्नीशियम, कैल्शियम, प्रोटीन, एनर्जी, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, शुगर, पोटैशियम, फास्फोरस, जिंक, विटामिन C, नियासिन, विटामिन B6, फोलेट, विटामिन A, विटामिन D, विटामिन E आदि जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं।
शतावरी के यौन संबंधी फायदे
शतावरी का उपयोग पुराने समय से होता आ रहा हैं। शतावरी एक ऐसी जड़ी-बुटी हैं। जो अनेको फायदे पहुँचती हैं। शतावरी के फायदे लेने के लिए आपको शतावरी के आयुर्वेदीय गुण-कर्म, उपयोग के तरीके, उपयोग की मात्रा, एवं विधियों की जानकारी होनी जरूरी है। तभी जाकर आप शतावरी के फायेदे ले सकते हैं।
- कामोद्दीपक के रूप में शतावरी पुरुषों के लिए भी लाभकारी है, क्योंकि नपुंसकता के इलाज के फार्मूलों में इसका प्रयोग किया जाता है ।
- शतावरी महिलाओं के स्तन के आकार और मांसपेशियों की टोन को बढ़ाने में मददगार होती है ।
- शतावरी सेक्स जीवन का अनुभव उत्तम बना देती है । यह सेक्स की इच्छा को बढ़ावा देती है और सेक्स पावर को उच्चतम स्तर पर ले जाती है ।
- शतावरी महिलाओं के प्रजनन अंगों के लिए एक शक्तिशाली यौन और कायाकल्प टॉनिक है। यह प्रजनन अंगों के लगभग सभी विकारों के इलाज में मदद करती है। यह एस्ट्रोजन उत्पादन को उत्तेजित करती है और मासिक धर्म चक्र को भी नियंत्रित करती है ।
- पुरुषों में यह शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाती है और शुक्राणु की गुणवत्ता और गतिशीलता में सुधार लाती है ।
- यह यौन स्वास्थ्य समस्याओं में प्रभाव के कारण बांझपन के उपचार में भी प्रयोग की जाती है।
- शतावरी को गर्भवती महिलाओं के लिए एक श्रेष्ठ टॉनिक माना जाता है। यह गर्भ को पोषित कर गर्भवती महिला के अंगों को गर्भधारण के लिए तैयार करती है और गर्भपात से भी बचाती है ।
- यह मां के दूध के उत्पादन को विनियमित करती है और उसकी गुणवत्ता को बढ़ाती है।
- शतावरी महिलाओं में मासिक धर्म चक्र के दौरान बड़े वजन को कम करने में सहायता करती है।
शतावरी के और अन्य महत्त्वपूर्ण फायदे
नींद ना आने की परेशानी- आप ने कई लोगो को नींद न आने की समस्या सुनी होगी। कई लोगों को नींद ना आने की परेशानी होती है। ऐसे लोग 2-4 ग्राम शतावरी चूर्ण को दूध में पका लें। इसमें घी मिलाकर खाने से नींद ना आने की परेशानी खत्म होती है। कहने का मतलब यह है कि शतावर चूर्ण अनिद्रा की बीमारी में बहुत ही लाभकारी हैं। और व्यक्ति इसका उपयोग यदि 1-2 सप्ताह उपयोग करे। तो इसका एक उचित व्यक्ति को लाभ मिलेगा।
रक्त शुद्धि के हेतु- शतावरी मूल को कूटकर 20 तोला पानी, 640 तोला मे से 40 तोला पानी रहे तब तक क्वाथ बनाकर कपडा से छानकर, मिश्री 70 तोला मिला के शरबत जैसा घट्ट बनाकर इलायची,जावित्री(जाय-फल) मिलाकर 1-2 तोला 42-45 दिन तक सेवन करें।
स्तनों में दूध बढ़ाने के लिए-
- कई महिलाओं को मां बनने के बाद स्तनों में दूध की कमी की शिकायत होती है। ऐसी स्थिति में महिलाएं 10 ग्राम शतावरी के जड़ के चूर्ण को दूध के साथ सेवन करें। इससे स्तनों में दूध की वृद्धि होती है। इसलिए डिलीवरी के बाद भी शतावरी के फायदे महिलाओं को मिलना उनके सेहत के लिए अच्छा होता है। और इससे माँ को उचित लाभ मिलता हैं। और बच्चा ठीक रहता हैं।
- शतावरी के जड़ से बने पेस्ट का दूध के साथ सेवन करें। इससे स्तनों में दूध अधिक होता है। और माँ के स्तन में दूध की कमी नहीं होती हैं।
- इसी तरह शतावरी को गाय के दूध में पीस कर सेवन करें। इससे दूध स्वादिष्ट और पौष्टिक भी हो जाता है। और बच्चा बहुत ही आराम से दूध को पी लेता हैं।
शतावरी अनार,तिन्तिडीक(समुंद्रीफल),काकोली,मेदा,महामेदा,मुलहठी,विदारीकन्द एव नींबू बिजौरा की जड़ की बारीक़ चूर्ण लेकर चूर्ण से चार गुना घी और घी से चार गुना पानी से पका ले। यह घृत रक्तपित्त,कास,ज्वर,उदरशूल(कोलिक) को नाश करता है।
शतावरी घृत :- शतावरी का रस 400 मिली, दूध 400 मिली तथा घी (गाय के दूध का घी ले सकें तो अति उत्तम) 200 ग्राम। जीवक, ऋषभक, मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीर काकोली, मुनक्का, मुलहठी, मुद्गपर्णी, माषपर्णी, विदारीकन्द और रक्त चंदन सब औषधियों को समान भाग (किसी भी मात्रा में) लेकर कूट-पीसकर पानी के साथ कल्क (पिठ्ठी) बना लें। यह पिठ्ठी 50 ग्राम। जल 400 मिली। शकर एवं शहद 25-25 ग्राम। इससे उत्तम पौष्टिक, बलवीर्यवर्द्धक एवं शीतवीर्य गुणयुक्त होने से पुरुषों के लिए शुक्र को गाढ़ा, शीतल एवं पुष्टि करने वाला होने से वाजीकारक और स्तम्भनशक्ति देने वाला है। पित्तशामक और शरीर में अतिरिक्त रूप से बढ़ी हुई गर्मी को सामान्य करने वाला है। स्त्रियों के लिए योनिशूल, योनिशोथ और योनि विकार नाशक, रक्तप्रदर एवं अति ऋतुस्राव को सामान्य करने वाला तथा शीतलता प्रदान करने वाला है।
शारीरिक कमजोरी :- अगर कोई व्यक्ति कमजोरी महसूस कर रहा है, तो वे शतावरी को घी में पकाकर मालिश करें, इससे शरीर की कमजोरी दूर होती है। सामान्य कमजोरी दूर करने में शतावरी के फायदे बहुत लाभकारी सिद्ध होते हैं। और व्यक्ति इसका उपयोग 2-3 सप्ताह कर ले तो इसका असर उस व्यक्ति पर अवश्य दिखाई देने लगेगा।
वीर्य दोष को ठीक करने के लिए :- बहुत से लोग ऐसे होते हैं ,जिन लोगों में वीर्य की कमी की समस्या में 3-10 ग्राम शतावरी को घी के साथ रोज सेवन करना चाहिए। इससे वीर्य की वृद्धि होती है। और व्यक्ति मर्दाना ताकत बढ़ती हैं।
नाक के रोग में :- नाक की बीमारियों में 5 ग्राम शतावरी चूर्ण को 100 मिली दूध में पका लें। इसे छानकर पीने से नाक के रोग खत्म हो जाते हैं। शतावर चूर्ण के फायदे नाक संबंधी रोगों के उपचार के लिए बहुत ही लाभकारी होते हैं। और नाक के इंफेक्शन कम हो जाते हैं।
वजन बढ़ाने में :- दुबली-पतली महिलाओं के लिए शतावरी का चूर्ण वजन बढ़ाने और कमजोरी दूर करते हुए उनमें ताकत बनाए रखने का एक शानदार तरीका है। वजन बढ़ाने के लिए इसे उपयोग में लेना चाहिए। और इसका उपयोग पुरुष भी करते हैं।
फल घृत :- शतावरी का रस 15 सेर,गाय का दूध 15 सेर,हल्दी,अजवायन,अश्वगंधा,मजिष्ठा,मेदा,कोष्टा,गुलहठी,बलबीज,त्रिफला,सफेद अदरक,कड़वा को दूध दोनों चंदन,अंगूर आदि को मिला कर खाने से पागलपन को मिटाता है,योनि रोग को मारता है।
शतावरी पॉउडर,पिपला मूल का चूर्ण घी मे पकाकर इससे 1 गुना दूध में मेवा और शक्कर मिलाकर पका ले। और जातपत्री,जातिमूल,इलायची,बादाम,गोक्षुर चूर्ण और बोदाना का चूर्ण मिश्रित करके इसमें घी डालकर नियमित दो समय 2-2 तोला गर्म दूध के साथ सेवन से खून साफ होता हैं, कमजोरी दूर भागती हैं। और शरीर तदुरूस्त रहता हैं।
शतावरी चूर्ण, कसेरु फल,दर्भमूल,गोखरू,भोकोला,कासमूल,गन्ना की जड़ और हल्दी के जड़ से – दूध मे शतावरी रस का नियमित सेवन करें।
बुखार में :- शतावर चूर्ण और गिलोय के बराबर-बराबर भाग के 10 मिली रस में थोड़ा गुड़ मिलाकर पिएं। इससे बुखार में लाभ होता है। 20-40 मिली काढ़ा में 2 चम्मच मधु मिलाकर पीने से बुखार में लाभ होता है। और बुखार जल्दी उतर जाता हैं। लेकिन इसे अच्छे से सेवन किया जाये तो।
क्वाथ में शहद,मिश्री के साथ सेवन से पित्तज,पेशाब में हो रही जलन मिटता है।
मधुर, शीतल, धातुवर्धक, कटु रसायन भारी, स्वादिष्ट, चिकना, दूधिया, अग्नि-प्रकाश करने वाला, बलकारक, बुद्धिमान वीर्यवर्धक, आँखों की शक्ति बढ़ाने वाला में, शतावरी, असावली, बड़ी शतावरी यह बलवर्धक, कफ और पित्त क्षय, रक्तविकार, शूल, सूजन और अतिसार को मिटाता है।
बवासीर में :- शतावरी का उपयोग आप बवासीर में कर सकते हैं, और बेहतर परिणाम देता है। 2-4 ग्राम शतावरी चूर्ण को दूध के साथ सेवन करने से लाभ होता है। और बवासीर कितनी भी पुरानी हो इसका लाभ अवश्य ही व्यक्ति को मिलता हैं।
सांसों के रोग :- शतावरी चूर्ण एक भाग, घी एक भाग, तथा दूध चार भाग लें। इन्हें घी में पकाएं। इसे 5-10 ग्राम की मात्रा में सेवन करें। इससे सांसों से संबंधित रोग, रक्त से संबंधित बीमारी, सीने में जलन, वात और पित्त विकार, और बेहोशी की परेशानी से आराम मिलता है। और व्यक्ति को इसका उचित लाभ मिलता हैं। और यदि व्यक्ति इसका उपयोग हप्तों तक कर दे तो उसकी सांस सम्बंधित समस्या दूर हो सकती हैं।
शतावरी का इस्तेमाल
शतावरी का इस्तेमाल आप अपनी शक्ति के अनुसार कर सकते हैं।
- रस- 20-40 मिली
- काढ़ा- 40-150 मिली
- चूर्ण- 4-7 ग्राम
शतावरी के उपयोगी भाग
- पेस्ट
- चूर्ण
- जड़
- जड़ से तैयार काढ़ा
सेवन करते वक़्त सावधानियाँ
शतावरी का सेवन करते वक़्त कोई विशेष सावधानी बरतने की जरूरत नहीं बस ये याद रखे की किसी भी वस्तु की अति नुकसानदायक हो सकती है इसलिए इसका सेवन भी लिमिट में करे | किसी रोग विशेषज्ञ की सहायता भी ले सकते है